यह सच है कि यदि बंगला साहित्य में से शरत् को हटा दिया जाए तो उसके पास जो कछ शेष रहेगा वह न रहने के बराबर ही होगा। शरत् ने बंगला साहित्य को समृद्ध ही नहीं किया है अपितु उसे परिमार्जित भी किया है। तत्कालीन सामाजिक आर्थिक धार्मिक और राजनैतिक परिस्थितियों का चित्रण करते समय शरत् की लेखनी ने न केवल बंगाल तक ही बल्कि परे भारतीय समाज में फैली तमाम कुरीतियों और दुर्बलताओं के साथ-साथ उसकी सभी विशेषताओं और गुणों को भी बड़ी कुशलता से चित्रित किया है।<br>भारतीय नारी के बाह्य रूप के साथ-साथ उसके आन्तरिक सौन्दर्य उसकी मनोभावनाओं का चित्रण शरत् ने जिस कुशलता से किया है भारतीय भाषाओं का कोई भी उपन्यासकार आज तक उसे छू नहीं पाया है। भले ही वह 'देवदास' की पारो हो या 'परिणीता' की लोलिता या फिर 'श्रीकांत' की राजलक्ष्मी और अन्य नारी पात्र । शरत् ने नारी को जितने निकट से देखा है जिस दृष्टि से देखा है वह निकटता और दृष्टि भारत की अन्य भाषाओं के उपन्यासकारों के पास नहीं मिलती। शरत् के हर उपन्यास का हर नारी पात्रं नारी जीवन से जुड़ी समस्याओं और उनके अन्तर्द्वन्द्व तथा मनोभावों का सजीव चित्र उकेरता है।<br>शरत् के अनेक उपन्यासों में 'परिणीता' एक श्रेष्ठ उपन्यास है जिस पर एक सफल फिल्म का निर्माण कई बार हुआ है।
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