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About The Book
Description
Author
प्रत्येक मनुष्य में परमात्मा बीज रूप में विद्यमान है। आवश्यकता है उसके अंकुरित होकर फलने और फूलने की। सन् १९४५ ई० में मैंने स्वामी शिवानन्द की पुस्तक ‘ब्रह्मचर्य ही जीवन है’ पढ़ ली जिसमें ‘भरणं बिन्दु पातेन जीवनं बिन्दु धारणात्’ सिद्धान्त प्रतिपादित था। बीस वर्ष की अल्पायु में खण्डित ब्रह्मचर्य अनेकों शारीरिक रोगों तथा उक्त पुस्तक के प्रभाव में मैंने आत्महत्या की जरूरत महसूस की। मैं बार-बार तुलसी के शब्दों को दोहराता था– ‘मो सों कौन कुटिल खल कामी’। माँ! तुम्हारे विशेष अनुग्रह से मेरे व्यक्तित्व में कोई हीन भाव नहीं पैदा हुआ। बहुत अन्दर से तुम्हारी आवाज आयी कि अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है मैं हूँ न तुम्हारे पास तुम्हारे साथ उठ पड़ो महात्मा बुद्ध की राह महावीर बनने। मेरी समझ में सभी प्रकार की ऊर्जा का संरक्षण ही ब्रह्मचारिता है। सर्व में से आवश्यक का चयन उसका ग्रहण पाचन संरक्षण तथा अनावश्यक का रेचन। माँ तुम्हारे आंचल की शीतल-सुखद छांव की गरिमा है। उस समय की निराशा के घोर अंधकार में से जो तुम्हारी लावण्यमयी छवि उभरी वह अपनी ओर खींचती चली गयी जिसके सानिध्य में मैंने जो खोज यात्रा शुरू की वही परमात्मा का व्यक्त आकर्षण बनी। जानिए आखिर परमात्मा क्या है।