PARSI SAMAAJ KA ROCHAK ITIHAAS (HINDI)

About The Book

हमारे समाज में पारसियों की संख्या तेजी से घट रही है। पूरे भारत में अब इस समुदाय के लगभग 50000 सदस्य ही बचे हैं। लेकिन आठवीं और दसवीं शताब्दी के बीच में मध्य एशिया से उनके यहां आने के बाद से उनके द्वारा अपनाये गए इस देश में पारसियों का योगदान असाधारण रहा है। पिछली शताब्दी में भारत का इतिहास हर क्षेत्र में उनके योगदान से भरा हुआ है। परमाणु भौतिकी से रॉक एंड रोल तक दादाभाई नौरोज़ी जैसे नामों से लेकर दिनशॉ पेटिट होमी भाभा सैम मानेकशॉ जमशेदजी टाटा अर्देशिर गोदरेज साइरस पूनावाला ज़ुबिन मेहता और फारोख़ बलसारा (ऊर्फ़ फ्रेडी मर्करी) तक। पारसियों के इस आकर्षक सुलभ अंतरंग इतिहास में वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार कूमी कपूर जो स्वयं एक पारसी हैं नामों कहानियों उपलब्धियों के माध्यम से इस छोटे लेकिन असाधारण अल्पसंख्यक समुदाय की निरंतर सफ़लता का उल्लेख करती हैं। वे इन मुद्दों पर गहराई से चिंतन करती हैं कि भारत में पारसी होने का क्या अर्थ है और साथ ही कैसे उनका योगदान भारतीय होने का अभिन्न अंग बन गया। कपूर के हाथों में पारसियों की कहानी घटनाओं से भरा एक उत्तेजनापूर्ण रोमांच बन जाती है : चीन के साथ व्यापार पर हावी होने से लेकर बॉम्बे का पर्याय बनने तक जो कि एक समय पर यकीनन इसके पारसियों द्वारा परिभाषित शहर था; टाटा मिस्त्री गोदरेज़ और वाडिया की व्यावसायिक सफ़लता से लेकर एक पारसी द्वारा स्थापित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया द्वारा कोविड-19 टीकों के निर्माण जैसे वर्तमान योगदान तक।
Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
downArrow

Details


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE