मात्र 13 कहानियों का संग्रह है। कहानियाँ विभिन्न कोणों पर सामाजिक अनुभव से उपजी अनुभूतियों को बयान करती हैं। मैं जानता हूँ कि लिखी जा रही सभी रचनायें जीवन में न तो पूरी तरह स्वस्थ मनोरंजन करती हैं और न ही ऊर्जा का संचार। यह सब पाठकों के मूल्याँकन पर निर्भर है। यह संग्रह भी उनके सामने मूल्याँकन के पश्चात ही स्थापित कर पायेगा कि वे समाज को कुछ दे भी पा रही हैं या बस यूँ ही लिखी गई हैं। पहली कहानी व अन्तिम कहानी प्रेम कहानी ही हैं पर अलग तरीके से कही गई हैं।
इन कहानियों में किशोर से युवा होने की अवस्था में आने से मन की चंचलता के वशीभूत होकर किस तरह के मोड़ आते हैं उसी पर आधारित है। इसी प्रकार ‘बूढ़ा मर नहीं पाया’ और कहानी ‘बड़ी माँ’ बच्चों के द्वारा बजुर्गों को अपमानित कर उन्हें छोड़ देते हैं इस पीड़ा से उभरने की दास्तान है। ‘बड़ी माँ’ में जहाँ रिश्तों के वैचारिक विमर्श को विषय बनाया गया है वहीं ‘बूढ़ा मरता नहीं’ में पत्नी को भूख से मरते देख उसके प्रति कर्तव्यबोध से उपजी व्यथा को संघर्ष का विषय बनाया गया है। कहानी ‘प्रेत योनि से लौटा लो’ युवा आदिवासियों के आपसी मजाक में बनी गंभीर परिस्थितियों का आकलन है। ‘अपराधी’ कहानी में सेवानिवृत्त पुलिस के उच्च अधिकारी का विश्लेषण है कि आखिर कौन सी मन:स्थिति में रहते हैं अपराधी हो जाते हैं तथा समाज सेवा भी करते हैं। इसकी तह में जाने वाले चौंकते हैं यह जानकर कि समाज में धारणा बन रही है कि पारिवारिक सुरक्षा के लिये घर में एक अपराधी होना आवश्‘मनहूस’ कहानी में अपशगुन का विश्लेषण है। हम छींकने या बिल्ली के रास्ता काटने पर भयभीत क्यों होते हैं? इसी तरह ‘चौपाल’ और ‘पर्व के बाद’ वर्तमान सामाजिक चलन व व्यवस्था को लेकर कुछ कहने का प्रयास है। ‘अपयश’ में एक घटना से उपजी परिस्थिति को न समझ पाने से दुखद पारिवारिक वेदना है। सभी कहानियाँ आसपास के परिवेश में हुई अनुभूतियों के सत्य की परिकल्पना से रूपान्तरण की किस्सागोई हैं। नयेपन व नई शैली में ढली कहानियाँ आशान्वित करती हैं कि पाठकों को पसंद आएँगी।यक है।
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