अपने आपको सुरक्षित रखने और पृथ्वी पर खुद को स्थापित करने के लिए मनुष्य ने प्रकृति के साथ एक लम्बा संघर्ष किया जिसके फलस्वरूप उसने प्रकृति पर विजय पायी। उसने जंगल काटे खेती शुरू की घर बनाए नगर बसाये और अपनी सुविधा के लिए प्रकृति को नियंत्रित किया। प्रकृति पर अपनी विजय के इस अहसास ने मनुष्य को इतना उन्मादी बना दिया कि उसने प्रकृति का ही विनाश करना शुरू कर दिया। विभिन्न मानवीय क्रियाकलापों ने पर्यावरण संकट इस प्रकार से उत्पन्न कर दिया है जिसने सम्पूर्ण मानव समाज को इस दिशा में सोचने के लिए बाध्य किया है। आज पर्यावरण व मानव जाति के बिगड़ते संबंधों को सुधारने की आवश्यकता है। समय बीतने के साथ पर्यावरण से जुड़ी समस्याएं गंभीर रूप धारण कर रही हैं। समस्या के सापेक्ष हमारी तैयारियां बेहद धीमी व सुस्त हैं। कायदे कानून से पर्यावरण नहीं सुधरता। भारत में दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा कानून हैं। पर यहीं पर इन कानूनों का खुलेआम उल्लंघन होता है और भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों की श्रेणी में आता है। पिछले दो सौ वर्षों में मनुष्य ने प्रकृति के साथ अपने संबंध को पूरी तरह बदल दिया है। आज प्रकृति से मनुष्य का संबंध मुनाफा कमाने के लिए है न कि उसके एक सहजीवी के रूप में है। डॉ. वशिष्ठ लिखते हैं कि ‘वैज्ञानिकों द्वारा बार-बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद प्रकृति से अधिकतम पदार्थ प्राप्त कर लेने की इच्छा खत्म नहीं हो रही। प्रकृति का दोहन खूब हो रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के निरंतर एवं असीमित दोहन ने दुनियाभर में पर्यावरण के लिए चिंताजनक स्थिति निर्मित कर दी है। अपने लाभ के लिए मनुष्य द्वारा विकास के नाम पर कई ऐसे आविष्कार भी कर दिए गए जो जल जंगल जमीन में जहर घोल रहे हैं जानवरों की मौत का कारण बन रहे है। प्रकृति के उपहारों का ऐसा दुरूपयोग किया कि धरती आकाश पाताल जहां से मिल सकता था उसे लेने में कोई कसर बाकी न रखी। इस बेहिसाब दोहन का यह नतीजा है कि आज पर्यावरण का संकट पूरी दुनिया पर छा गया है। पर्यावरण संकट के दुष्परिणाम अकाल बाढ़ भूकम्प भूस्खलन जैसी आपदाओं के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग कचरे की समस्या कचरा प्रबंधन जल प्रदूषण वनों का विनाश खेती की जमीन पर उगते कंक्रीट के जंगल शहरों में बढ़ता शोर वाहनों और कारखानों का शोर और धुआं पीने के पानी को तरसते लोग मरती नदियां परमाणु बिजली बाढ़ की विनाशलीला सूखे का कहर कीटनाशकों का दुरूपयोग और शहरों में घर खोजते जंगली जानवर लेखक की चिंता के मुख्य बिंदु हैं। यह किताब पर्यावरण उसके विनाश और उससे पैदा हो रही समस्याओं के बहुआयामी और बहुस्तरीय रूपों से हमें रुबरु कराती है। डॉ. आशीष वशिष्ठ की इस किताब में छोटे-बड़े कुल जमा 61 लेख हैं जो पर्यावरण से जुड़े अलग-अलग मसलों पर केन्द्रित है। हालांकि डॉ. आशीष वशिष्ठ ने अपनी इस किताब को भारत की पर्यावरण समस्या के विभिन्न मसलों और बिन्दुओं पर ही केन्द्रित किया है लेकिन हम जानते है कि पर्यावरण की समस्या अब किसी एक देश की समस्या नहीं है। यह पूरे विश्व की समस्या है।
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