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About The Book
Description
Author
सुदूर तक फैला मरुस्थल जहाँ तक नज़र जाए धवल धोरे-ही-धोरे दूर तक कोई रुख (वृक्ष) नहीं। शीत ऋतु में ठण्ड से हड्डियाँ काँप जाएँ ग्रीष्म ऋतु में लू से खुले में खड़ा मुर्गा तंदूरी चिकन बन जाए। वहाँ कठिनाइयाँ अभाव और निर्धनता थे पर अपनापन प्रेम और संतुष्टि थी जो जीवन को आनन्द से भर देते। दूसरी तरफ़ पॉश कॉलोनी में रहने वाले लोग जिनके घर सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त हवाई जहाज पंचसितारा होटलें महँगी शराब और लक्ज़री गाड़ियाँ सहज उपलब्ध उन्हें निकट से देखने का अवसर मिला जहाँ संपन्नता और असीमित सुख के साधन है फिर भी असंतुष्टि द्वेष ईर्ष्या और प्रतिद्वंदिता। जहाँ हम नहीं पहुँचे जो हमारे लिए रहस्यमय है वह हमें लुभाता है। हमें लगता है जहाँ अभाव है वे दुखी है जहाँ भरपूर साधन है वे सुखी है परंतु ऐसा है नहीं। सुख प्रेम समर्पण त्याग समझ से अनुभूत होता है साधनों से नहीं। इंसान सुख के लिए इतने असीमित साधन जोड़ता है कि जीवन का लक्ष्य ही पैसा हो जाता है सारी ऊर्जा उसमें लगाकर अंत में छला हुआ महसूस करता है। मेरी कहानियाँ इसी के इर्द-गिर्द घूमती है।