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About The Book
Description
Author
●आन्द्रिया द्वार्किन (1983): हाँ चीत्कार करना चाहती हूँ मैं : समो लेना चाहती हूँ इस चीत्कार में सारी बलात्कृताओं की चीत्कारें और प्रताड़ना से लहूलुहान औरतों की सुबकियाँ। रखना चाहती हूँ इस चीत्कार की नाभि में औरत के मौन की कानों को बहरा कर देने वाली चीत्कार; वह सन्नाटा जिसमें हम पैदा होती हैं क्योंकि हम औरत हैं और उसी सन्नाटे में हममे से ज्यादातर मर भी जाती हैं। ●पर्दे में औरत: ईरान के समूचे आधुनिक इतिहास के हर दौर में राज्य द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप हिजाब नहीं पहनने के आरोप में हजारों औरतें जलालत गिरफ्तारी हिंसक हमलों जेल का शिकार बनती रही हैं । दूसरी ओर ईरान के समाज का सच यह भी है कि ज्यादातर स्त्री आन्दोलन कार्यकर्ताओं-फेमिनिस्टों की रुझान सत्ता के हिंसक-दमन कानूनों को चुनौती देने और उनमें बदलाव की कोशिश करने की बजाय संस्थानिक राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक सत्ता संतुलन में बदलाव की कोशिश करने की है।