पथ आप प्रशस्त करो अपना हताश हो चुके साधकों को महारथी बनाकर विजय द्वार तक ले जाने की राह दिखाती है। दूसरों पर आश्रित होने की अपेक्षा स्वयं पर भरोसा रखने की सीख देती है। भगवान पर आश्रित न होकर आस्था रखने की शिक्षा देती है अपने ज्ञान पर भरोसा रखकर किसी अन्य माध्यम से सफलता का मार्ग न खोजने की सर्वोचित सीख देती है। दिग्भ्रमित होकर कुमार्ग पर निकल जाने से बचने के लिए सामूहिक प्रयासों पर भरोसा रखने का परामर्श देती है। हमारी सोच को सही दिशा देने का कार्य बहुत कम लोग करते हैं। जो सन्मार्ग पर चलने की सीख दे सकते हैं उन तक पहुंचने की भी सीख इस पुस्तक में मिलेगी। लेखक ने अपने स्वयं के अनुभवों को तथा समाज से सफलता / असफलता पाने वाले लोगों के अनुभवों को उदाहरण बनाकर अपनी सीख को सफलता का उचित सन्मार्ग प्रमाणित करने का प्रयास किया है। गीता का सिद्धांत मनुष्य के कर्म ही मिलने वाले फल का निर्धारण करते हैं मात्र पठनीय ही नहीं है अपितु अनुकरणीय भी है। आज के वैज्ञानिक युग में जहां व्यक्ति पारिवारिक बंधनों को जंजीर समझकर उसे तोड़ कर भाग निकलने का प्रयास कर रहा है वहीं लेखक ने उन बंधनों को सफलता का आधार बनाकर यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि इस स्थिति में आप अपने बुजुर्गों के अनुभवों से वंचित रह जायेंगे जो वास्तव में सफलता की सीढ़ी तैयार करने का कार्य करते हैं। यही कारण है कि लेखक इस पुस्तक को पढ़ने का परामर्श देता है। फिर जैसी करनी वैसी भरनी
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