*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹245
₹250
2% OFF
Hardback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
‘दिव्य प्रेम सेवा मिशन’ की कल्पना जैसे अनायास ही साकार हुई वैसे ही मेरा उससे जुड़ना भी अनायास ही था। आत्म-साक्षात्कार के लिए निकले एक साधक के सामने अचानक कुष्ठ रोगियों के रूप में समाज खड़ा हो गया और ‘दिव्य प्रेम मिशन’ का जन्म हुआ। इस पुस्तक में पहाड़ों की संवेदनशीलता और पीड़ा की बातें हैं जिन्हें हमारे पूर्वजों ने अरण्य नाम दिया उन पर समाज और शासन के बीच तलवारें खिंचने की आशंकाएँ हैं हिमानियों के लुप्त होने के खतरे विकास के नाम पर प्रकृति के दोहन को शोषण में बदलने के कुचक्रों की दास्तान हैं। तीर्थों को निगलते पर्यटन स्थल मलिनता के बीच तीर्थों की पवित्रता के दावे अपनों से ही त्रस्त गंगा और ऐसी ही अनेक विचारणीय बातें हैं। बीच-बीच में महान् परिव्राजक विवेकानंद योगी अरविंद युगांतरकारी बुद्ध और स्वच्छता के पुजारी गांधी सरीखे लोगों की याद भी आती रही; जो पाथेय मिला वह भौतिक नहीं बौद्धिक और आध्यात्मिक था। वह बाँटकर ही फलित होता है इसलिए आपके सामने है।.