पथिक की राह इस छोटी सी गद्य और पद्य पुस्तिका जो है शिवांशु कुमार द्विवेदी के द्वारा लिखित है इसमें मुख्य रूप से श्री रमेश गर्ग[हिंदी शिक्षक] के जो सुझाव हैं लिखने की जो विधाएं हैं प्रदर्शित करने की जो एक कला है वह दर्शाई गई है इस छोटी सी पुस्तिका में आपको शिवांशु द्विवेदी के यानी मेरे बारे में और मेरे आवरण के बारे में बहुत सी बातें मिलेगी आपको इसमें कुछ कविताएं मुख्य रूप से कह सकते हैं कि संस्मरण या रेखा चित्र जो अंकित है एक पद के रूप में वह इस पर्यावरण पर्यावरण के जो लोग हैं उनकी जो अवधारणाएं हैं उनका जो परिवर्तनशील है सूत्र है इन सभी को एकत्रित करके इस लेखनी में रखा गया है हम बहुत सारी पाठ्यपुस्तक पढ़ते हैं पाठचर्चा करते हैं इनसे केवल हमको प्रश्न उत्तर या कुछ व्याकरण की चीजें सीखने को तो मिलती है लेकिन जो इसके अंदर की कला है चाहे वह उनका उद्देश्य रहा हो कि भक्ति काल हो रीतिकाल हो आधुनिक काल हो या आधुनिक काल की विभिन्न प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कवियों की कविताओं का एक सचित्र वर्णन हो इनकी सभी भिन्न कलाओं से जो एक कला निकलती है जो इनकी कला से हम परिकल्पना कर पाते हैं अपने अंदर एक कल्पना उजागर कर पाते हैं पाठ्यपुस्तक के जरिए वह एक अद्वितीय पहलू होता है एक छात्र के लिए या एक छात्रा के लिए क्योंकि विद्या के अंश में हिंदी भी आती है हिंदी में कविताएं भी आती हैं कहानियां भी आती हैं उपन्यास भी आते हैं डायरीज भी आती हैं और बहुत सारी चीजें प्रस्तुत होती हैं बस इन्हीं कुछ चीजों को लेकर आपके सम्मुख में प्रस्तुत यह पुस्तिका है पथिक की राह...!!!
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