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About The Book
Description
Author
‘व्यंग्य’ साहित्य की एक विधा है जिसके बहुआयामी रस है, प्रायः हास्य की अधिकता होने के कारण ही हास्य व्यंग्य प्रचलन में है। हमारा स्पष्ट मत है कि व्यंग्य का समुचित निरूपण करुणा से ही संभव है क्योंकि इसके मूल में विसंगति होना अनिवार्य है। प्रस्तुत संग्रह में सम्मिलित की गईं रचनाएं सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक यानी समाज के विभिन्न वर्गों में व्याप्त विसंगतियों की अभिव्यक्ति हैं जो आपको सोचने के लिए भी विवश करेंगी, गुदगुदाने में भी समर्थ होंगी जिसका मूल्यांकन सुधी समीक्षकगण व पाठकगण ही करेंगे।