परिस्थितियों का गुलाम कौन नहीं है इंसान यही तो करते आया है स्थिति उन्हें जैसा ढालती है वैसा वह ढलता जाता है और यह बात सही भी तो है विकट परिस्थितियाँ इंसान को और मज़बूत बना देती है इंसान का सफ़र शून्य से शुरू होता है। शून्य से 70-80 की उम्र तक की यात्रा में उसे बहुत सारे अनुभव होते हैं कुछ सुखद कुछ दुखद। एक उदाहरण से समझते हैं हमारी ज़िन्दगी है एक रेलगाड़ी या यूं कहूँ एक पैसेंजर ट्रेन और यह स्टेशंस है हमारे आने वाले पड़ाव जहाँ हमें रुकना ही होता है कुछ सुखद और कुछ दुखद पड़ाव से गुजर कर ही इंसान को उसकी अंतिम मंज़िल मिलती है और इसके बीच का सफ़र आसान नहीं होता हमें बेहद धैर्य के साथ उस पड़ाव पर ठहरना और वहाँ से निकल जाने का इंतज़ार करना पड़ता है वैसे ही जैसे कि रेलगाड़ी एक स्टेशन पर रुक कर अगले स्टेशन की ओर निकालने का करती है।
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