धर्म का सार: खुमारी छोटा सा वचन: पीवत रामरस लगी खुमारी! ठीक ऐसा ही नानक ने कहा है: नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन-रात। ये सब एक ही जमात के फक्कड़ हैं। ये सब रिंद हैं पियक्कड़ हैं। नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन-रात। यह खुमारी ऐसी है कि चढ़ी तो चढ़ी उतरती ही नहीं फिर। कबीर के इस वचन को एक-एक शब्द को समझने की कोशिश करना क्योंकि कबीर बहुत शब्दों के मालिक नहीं हैं। थोड़े से शब्द हैं इसलिए एक-एक शब्द में डुबकी लगानी जरूरी है। पीवत रामरस लगी खुमारी! पहला शब्द तोः ‘पीना’। सत्य को जानना नहीं है--पीना है जीना है कंठ से उतर जाने देना है। खोपड़ी में नहीं भरना है--प्राणों में अंतरंग तक पहुंच जाने देना है। क्यों? क्योंकि सत्य कोई कुतूहल नहीं है कोई जिज्ञासा नहीं है--प्यास है! और प्यास तो पीने से मिटेगी। और भूख तो भोजन से मिटेगी। लाख प्यासे आदमी के सामने बैठ कर तुम जल की चर्चा करते रहो सारा विज्ञान जल का समझा दो यह भी बता दो कि ऑक्सीजन और उद्जन के परमाणुओं से मिल कर जल बनता है एच टू ओ का फॉर्मूला भी पूरा का पूरा समझा दो फिर भी क्या होगा? प्यासा कहेगा बकवास बंद करो मुझे प्यास लगी है। मुझे पानी दो। मुझे पानी के संबंध में नहीं जानना है। पानी के संबंध में जान कर क्या करूंगा? जानने से क्या होगा? जानने को पीऊं खाऊं ओढूं क्या करूं? पानी दो मुझे पीना है। ओशो
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