Phalon ki Kachehari
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About The Book

केशव शुक्ला डॉ. गिरीश कुमार वर्मा लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार हैं। साहित्य की अनेक विधाओं में आपका लेखन हैं। पत्र-पत्रिकाओं में आपकी मनोविनोद परक रचनाएं डंडा लखनवी उपनाम से छपती रहती हैं। इनके प्रस्तुत कविता-संग्रह फलों की कचहरी में कुल इक्कीस कविताएं हैं। इन कविताओं का फ़ोकस हमारे आसपास पाये जाने वाले फलों पर है। इस क्रम में प्रत्येक फल अपने रूप और गुणों का परिचय स्वयं देता है। कविताओं के साथ फलों का चित्राकंन भावों की संप्रेषणीयता को बढ़ाने वाला है। विद्यालय की बाल-सभाओं में फलों की कचहरी को “बाल-नाटिका“ के रूप में मंचित किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर इस प्रयोजन हेतु अनानास का सैनिक रूप देखिए। “अनानास है नाम हमारा हम फौजी गोरिल्ले! लगे हमारे सिर पर रहते घास-फूस के किल्ले !!“ जैसे अनानास को सैनिक के रूप में दर्शाया गया है उसी तरह से अनार की शांतक्लॉज के रूप में प्रस्तुति हुई है। अमरूद का चित्रण व्यापारी के रूप में है। अंगूर को टॉफी आम को नाना-नानी ककड़ी को शिक्षिका केला को मेकेनिक खरबूजा को नेता तथा तरबूज का हलवाई के रूप में चित्रण मनमोहक है। वस्तुतः मनोविनोद परक बाल-कविताओं की सर्जना बहुत कम हो रही है। इस दृष्टि से कवि का यह प्रयास सराहनीय है। प्राइमरी कक्षा के छात्रों के लिए यह रचनाएं उपयोगी हैं और पाठ-पुस्तक में शामिल किए जाने योग्य हैं। कविताओं की भाषा-शैली सरल सुबोध तथा बालमन को पुलकित करने वाली है। आशा है कि यह कविता-संग्रह शीघ्र प्रकाशित होकर पाठकों के हाथों में पहुंचेगा। मैं डॉ. गिरीश कुमार वर्मा उर्फ़ डंडा लखनवी को इस अभिनव प्रयोग के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ। 37-पत्रकार कॉलोनी आर.बी. हॉस्पिटल के निकट रिंग रोड नम्बर-2 बिलासपुर छ.ग. पिन-495001
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