यह उपन्यास उस युवा वर्ग पर आधारित है जिसने ग्रामीण परिवेश के निम्न मध्यवर्गीय परिवार में संक्रमण के दौर में जन्य लिया अंतर तेजी हैं बढ़ रहे भूमंडलीकरण के कारण बड़े सपने देखने लगा । उत्तर भारत के राज्यों में आज भी बड़े सपने का मतलब केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन होना है ऐसा कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा । और इसी स्वप्न को पूरा करने की यह में यह युवा वर्ग इस स्वप्न में इतना डूब जाता है कि कभी-कभी तो वह अपनी स्वयं की पहचान तक भूलने को विवश हो जाता है । वह मनुष्य न होकर मशीन जैसा होने लगता है और चयन के बाद संघर्ष के पथ में बिखरे अनेक क्षणों को बस देखता-सा रह जाता है । यह कहानी एक ऐसे ही नायक की है जो एक स्वप्न की पूर्ति के लिए कितने ही सपनों को तिलांजलि दे देता है यहाँ तक कि अपने अन्तर्मन से भी कट जाता है । दूटता घर एकाकीपन बेरोजगारी पारिवारिक महत्त्वाकांक्षा और एक बड़े स्वप्न के बीच के मानसिक द्वंद्व का चित्रण इस उपन्यास के महत्त्वपूर्ण पक्ष को दर्शाता है।
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