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About The Book

पिंजर यानी कंकाल। न कोई आकृति न सूरत न मन न मर्ज़ी बस कंकाल। ‘पिंजर’ आज़ादी के दौर के भारत की कहानी है। उस हिस्से की जो हिंदुस्तान से कटकर पाकिस्तान बना। पिंजर में स्त्री की पीड़ा है वेदना है संताप है त्याग है और ममत्व है। साथ में मर्दों के अपराध हैं और पश्चात्ताप भी। हिंदू हैं मुसलमान हैं। विभाजन का दंश है। धर्मांधता के विरुद्ध खड़े मानवीय मूल्य हैं जिनके सहारे अंत में वर्तमान के यथार्थ को कुबूल कर उपन्यास की नायिका सबके गुनाह माफ करती है और फिर से जिंदा हो उठती है भविष्य की अनंत संभावनाओं के साथ| About the Author अमृता प्रीतम पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थीं। उन्हें पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ भी शामिल है। उन्हें भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण प्रदान किया गया था। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाली वे पहली महिला लेखिका थीं। भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी वे सम्मानित की गई थीं। उन्हें अपनी पंजाबी कविता ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ के लिए बहुत प्रसिद्धि प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गई|
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