हमारी सांस्कृति हमारा कल्चर हमें सब्र या संयम रखना सिखाता है। यही शिक्षा हम अपनी बच्चियों को देते हैं। पर कभी-कभी हमारी दी हुई शिक्षा के ऊपर बुरे लोग भारी पड़ जाते हैं। बच्चियां उसमें पिस कर रह जाती हैं। कभी कभी तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ जाता है और मम्मी पापा हाथ मलते रह जाते हैं। पिंक ओढ़नी एक ऐसी बच्ची की कहानी है जिसनें अपने जीवन में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना किया। उसकी ज़िन्दगी में बहुत सारी परेशानियां आईं पर उसनें हौसला नहीं छोड़ा और न ही किसी ने उसे हौसला छोड़ने दिया। इस संसार में अगर बुरे लोग हैं तो कहीं न कहीं अच्छे लोग भी हैं। इसीलिए ये दुनिया आज भी क़ायम है स्थित है वरना यक़ीन जानिए कब की ख़त्म हो चुकी होती। इस स्टोरी में सब काल्पनिक हैबस जिस बच्ची की स्टोरी मैंने लिखी है वो आज इस दुनियां में नहीं है। कहते हैं उम्मीद पर दुनिया क़ायम है हमारी उम्मीदें हमारे सपने ये हमारे लिए ऊपर वाले का अनमोल गिफ्ट हैं। ये हमारे हौसलों को और भी मज़बूत करते हैं। शायद इसीलिए इस कहानी में मैंने इस बच्ची को जीवित रखा है और नई उम्मीदें देने की कोशिश की है। - नसरीन आबिदा ख़ान.
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