पिता-पुत्र के संबंधों को लेकर यह एक मार्मिक उपन्यास लिखा गया है। इस उपन्यास में एक पिता अपने पुत्र के आगे हार जाता है लेकिन फिर भी वह गौरवान्वित महसूस करता है जबकि पहले अहम् की जंग होती है। वैसे दुनिया में हरेक पिता अपने पुत्र को अपने से आगे बढ़ते हुए देखना चाहता है लेकिन इस उपन्यास की कहानी इस सबसे अलग हटकर है| About the Author रमेश बक्षी का जन्म 15 अगस्त 1936 को हुआ था। आपने उपन्यास कहानी नाटक कविता व्यंग्य बाल साहित्य समेत हिन्दी साहित्य की हरेक विधा में जमकर कलम चलाई है। हम तिनके किस्से ऊपर किस्सा अट्ठारह सूरज के पौधे बैसाखियों वाली इमारत चलता हुआ लावा खुलेआम आदि आपके चर्चित उपन्यास हैं|
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