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About The Book
Description
Author
इस संचयन में बहुत सारी भावनाएं सम्मिलित है जैसे अप्रसनता अनुराग संताप (पीड़ा ) दायित्व आदि | जिसके माध्यम से आप अपने भावनाओं को वक़्त कर सकते है| हमारे जीवन में हम हर चीज़ की एक परिभाषा पढ़ते हैं। ये परिभाषाएं तथ्य पर आधारित होती हैं। लेकिन भारत ऐसा देश है जहाँ कुछ परिभाषाएं भावनाओं से बन जाती हैं। जैसे प्यार की परिभाषा भावनाओं की परिभाषा आदि। ऐसे ही एक परिभाषा पिता की होती है हमें कभी कोई चीज मांगनी नहीं पड़ती पापा हमेशा से पहले से हमारी हर जरूरत का ध्यान रखते है वो कभी अपने लिए कुछ खरीदते मेने देखे नहीं और हमारे लिए कुछ लाये न हो ऐसा हुआ नहीं। अपनी हर ख़ुशी से पहले हमारी ख़ुशी देखते है अपनी हर जरूरत से पहले हमारी जरूरत पूरी करते है। मैं कितनी भी बड़ी हो जाऊ उन्हें आज भी बच्ची लगता हूँ। अब भी पापा मुझे कहीं जाते देख यही कहते है कि ध्यान से जाना और सीधे घर आना..! अगर पापा ना होते तो शयद ये जिंदगी ना होती और इतनी खूबसूरत नहीं होती जितनी की अब है। हमारे पिता हमारे सर की छत है जो छत हमारे ऊपर किसी भी मुसीबत को नहीं आने देती। मैं पिता की मन्नत हूं.... मैं उनके घर की जन्नत हूँ