पूर्व की बातों को सहेज कर वर्तमान को महसूसती और भविष्य के प्रति जिजीविषा जगा कर कई विषयों की सूक्ष्मता से पड़ताल करती कविताओं का संग्रह है पिताजी की साईकिल। पारिवारिक मूल्यों के अवमूल्यन से रिश्तों में आई दरार का चुभन तथा संवेदना शून्यता के विरुद्ध छोटी छोटी बातों में भी खुशियों की तलाश का भगीरथ प्रयास। पागलपन की हद तक प्रेम की पराकाष्ठा और बचपन की स्मृति के बहाने संतोष और सुकून। बेजान पत्थरों का छलकता दर्द तो कहीं कबाड़ में भी अपनों के होने का अहसास मात्र से देह में सिहरन। गंभीर और हास्य विषयों की कविता का संतुलन। साथ ही और भी बहुत कुछ है मन को उद्वेलित कर उर्जा का संचार करने के लिए एवं मन को गुदगुदा कर आनन्द की अनुभूति के लिए।
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