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About The Book
Description
Author
About the Book: कुंवर वियोगी एक विशुद्ध भारतीय गृहस्थ कवि हैं जो प्रेम के प्रकृति के अवलंबन से सौन्दर्य और प्रेम की ऐन्द्रियता को काव्य से अभिव्यक्त करतें हैं। यह प्रेम अपनी पत्नि से है जो विराट रूप लेकर काव्य में उतरता है। कविता में प्रेम है तो प्रिय के प्रति अप्रतिम आकांक्षा की प्रबलता कल्पना रूप में घटित होती है जो कामना से प्रेरित हो ऐन्द्रियता को निर्देशित करती है। कुंवर वियोगी के जीवन का आधार ‘प्रेम’ है। प्रेमी युगल के प्रेम परस्पर संयोग प्रिया का चित्रण बहुत ही भावप्रवण है अनोखा है। यही अनोखापन प्रेम आवेग कविता को सौन्दर्य प्रदान करता है और इस प्रेम को गहरी आत्मियता से अधिक उद्यात बना देता है। यह प्रेम वासनाजन्य और उन्मŸा नहीं है। मात्र प्रिया को छू लेने की चाह है। सात्वीक निश्छल प्रेम- यहां सुलभ है यह आत्मिक प्रेम ही जीना सिखाता है। जीजीविषा को जाग्रत करता है अवचेतन मन में भी भावों को जाग्रत करने की विलक्षण क्षमता रखता है। प्रेम की वत्सलता में रति का अकुंठ अंकन करता है । इस प्रेम में अधीरता नहीं वरन पूर्णता का भाव है जो तृप्त करता है। कुंवर वियागी का यह प्रेम एक ऐसा फ्रेम है जो प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से सब दूर उपस्थित है। जिसके बिना संघर्ष वेदना का सहन करना सपने देखना प्रतिक्षा जीना संभव नहीं है। प्रेम के अवलंबन से अपनी राह बनाते प्रेम से ताप का शमन आक्रोश को शांत करने नई उम्मीदों में परिवर्तन करते जाते हे। प्रकृति स्वंय और ‘प्रेम’ से प्रेम की शक्ति ने कुवंर वियोगी के स्वभाव को उदारता संयम शालीनता शुभ्रता दी है जो अन्यत्र देखने में नहीं आती है।