नवंबर 1947 में पाकिस्तानी लश्करों और पुंछ के बीच एक आदमी चट्टान की तरह खड़ा रहा। चालीस हज़ार शरणार्थियों ने एक वर्ष तक उस पर खाने आश्रय और लुटेरों से बचाव के लिए निर्भर किया। सभी मुश्किलों का सामना करते हुए उसने एक हवाई पट्टी बनाई और साहसी पायलटों जैसे बाबा मेहर सिंह ने आपूर्ति और गोला-बारूद वहाँ पहुँचाया जब तक कि घेराबंदी टूट नहीं गई। सिंगापुर में जापानी के द्वारा युद्धबंदी बनाए जाने पर वह दो साथी अधिकारियों के साथ भाग कर छह महीने तक दुश्मन के कब्जे वाले मलाया थाईलैंड और बर्मा से होते हुए भारत पहुँचे। इस व्यक्ति ने भारत की सेवा अपने कर्तव्य से कहीं अधिक की। लेकिन उसके जनरलों ने उसे दंडित किया उसे न्याय से वंचित किया कोर्ट-मार्शल किया और निकाल दिया। उन्होंने उसके पदक छीन लिए लेकिन उसके मिलिटरी क्रॉस को नहीं ले पाए। यह व्यक्ति ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह एम सी थे। पुंछ के लोग उन्हें शेर बच्चा कहते हैं और आज भी उनकी पूजा करते हैं।
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