निर्मल वर्मा मनुष्य-जीवन की ऐकांतिक अनुभूतियों के रचनाकार हैं। व्यक्ति और समाज का बाहरी एवं स्थूल यथार्थ उनकी कहानियों में नीरस विवरणों के रूप में नहीं आता वे यथार्थ के उन सिरों को उभारते हैं जिनसे हमारा साबिका अत्यन्त निजी क्षणों में पड़ता है और जिनका सरोकार समाज में निरन्तर अकेले होते जा रहे व्यक्ति के अन्तर्मन से है। वे उसके आन्तरिक कोलाहल और हाहाकार के चित्रण से ही अपने इस त्रासद समय पर टिप्पणी करते हैं। इसके लिए उन्हें किसी घटना का सहारा नहीं चाहिए चाहिए सिर्फ़ एक परिवेश और उसकी धड़कनों को अनुभूत कर सकनेवाला एक संवेदनशील हृदय। निर्मल जी की प्रायः प्रत्येक कहानी इसी रचनात्मक ज़रूरत से उपजी है—एक विशेष मूड और मनःस्थिति के आद्यन्त निर्वाह से परिपूर्ण जिसे हम अपने भीतर महसूस करते हैं। यह निर्मल वर्मा की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली कहानियों की प्रस्तुति है। जाहिर है ऐसी और भी कहानियाँ हैं जिन्हें इस संकलन में होना चाहिए था क्योंकि उनकी लगभग हर कहानी को उनके पाठकों ने विशेष मानकर ही पढ़ा है। नई हिन्दी कहानी को जैसी कलात्मक अर्थवत्ता उन्होंने दी वह उनका ऐतिहासिक अवदान है।
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