शिवमूर्ति आम जन-मन को जीनेवाले उनके बीच रचने-बसनेवाले उन्हीं की दुनिया के एक ऐसे नागरिक हैं जो अपने समाज के लोगों की दशा-दुर्दशा की वास्तविक स्थितियों-परिस्थितियों को बगैर किसी पर्दे या झालर-झूमर के सामने लाता है। उनकी कहानियों के पात्र पूरी ताकत के साथ सामाजिक अन्याय पीड़ा प्रताड़ना को जीते हुए भी चुपचाप उसे सहन नहीं कर जाते। बल्कि उस यंत्रणा को भोगते हुए उनसे लड़ते पछाड़ खाते पर अन्ततः उन्हें पछाड़ते देखे जा सकते हैं। यही शिवमूर्ति की कहानियों की ताकत है। चित्रण में वही गँवई धूसरपन विट लोकोक्तियों से रची-पगी भाषा का सौन्दर्य। उनकी भाषा में किसी तरह की कोई चिकनाहट नहीं कृत्रिमता नहीं ठेठ सहज खुरदुरापन है। अगर शिवमूर्ति का कोई ‘शिवमूर्तियाना’ अन्दाज है तो इसी ‘कथाभाषा’ में है जिसे उन्होंने अर्जित नहीं किया है जिया है और कमाया है
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