Pravasi Kathakar Shrinkhla - Shailja Saksena

About The Book

प्रलेक प्रकाशन ने प्रवासी हिंदी कथा श्रृंखला की परिकल्पना की जिसके तहत पहली किश्त में हम सात कहानीकारों की कहानियां अपने पाठकों के लिये ला रहे हैं। </br> #प्रवासी_कथाकार_शृंखला : Shailja Saksena</br> प्रवासी चाहें भारतीय हो या किसी और देश का अपने साथ एक कहानी और संस्कृति लेकर नई ज़मीन पर पैर रखता है और फिर धीरे-धीरे बनाता है अपना नया घर। कौन सी होती हैं वे कहानियाँ जिनको अपनी अटैचियों में उठाए ये लोग दूसरी अनजान जगहों पर पहुँच कर सुख-दुख के साथ धूप-छाँह का खेल खेलते हैं? कैसे अलग होती है उस देश में रहने वालों से इनकी ज़िंदगी? पढ़िए इन कहानियों में जो समय और देश लाँघ कर पूरी दुनिया को अपने में समेटे हैं और मनुष्य के अनेक भावों को उकेरती मानों एक सम्मान भरे ठहराव को ढूँढ रही हैं। यहाँ आपको बहुत कुछ मिलेगा जैसे- १९४२ में जान बचाने को भागती लेबनॉन की एक रात है जो एक यहूदी के यहाँ पनाह लेती है युगाँडा से आई नौकरी की ज़मीन पर अपनी माँ के पैरों के निशान ढूँढती ’शार्त्र’ है अमेरिका के ’वाई-टू-के’ के उतार-चढ़ाव में डोलती ’नीला की डायरी’ है तो .... ’उसका जाना’ में कैनेडा आई तेरह वर्षीया बेला से सुनिए उसके घर की कहानी। जिस ज़मीन को ये अपनी बनाते हैं वहाँ के लोगों की ज़िंदगियाँ भी तो कहानियों से भरी हुई हैं इन कहानियों को पास से देखिएगा तो आपको कॉर्पोरेट जगत की संवेदनहीनता से बाहर निकलने को तैयार ईवान मिलेगी एक अलग ही ज़िंदगी जीता जॉन स्मिथ दिखेगा ’अस्पताल के दो बिस्तर’ में यमन की घायल औरत की हिम्मत बैठी है व्यस्तताओं के बीच अपनी पहचान खोजती लंदन की एक शाम मिलेगी। ’सिस्टर फ़्रॉम द अदर मदर’ में ट्रिनिडाड और भारत की अदृश्य गर्भनाल से जुड़ी दो स्त्रियाँ हैं तो बिखरते संबंधों का एक अनोखा समाधान मिलेगा वकील रामप्रसाद तालेवाला के पास ’आग’ में!
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