सच तो यह है कि किसी भी भाषा का प्रवासी साहित्य उसे ही कहा जा सकता है जो किपहली पीढ़ी के प्रवासियों द्वारा रचा गया हो। इस मामले में ब्रिटेन अमरीका कनाडा युरोपअफ़्रीका खाड़ी देश सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में रचा जा रहा साहित्य इस श्रेणी में रखा जासकता है। मगर यहां भी यदि किसी काल में कोई ऐसा हिन्दी रचनाकार पैदा हो जाएजिसका जन्म इन्ही देशों में हुआ हो तो वह भी प्रवासी लेखक न कहला कर भारतेतर लेखकही कहलाने का हक़दार होगा।पिछले पच्चीस तीस वर्षों में पश्चिमी देशों में हिन्दी के बहुत से बेहतरीन कथाकारउपन्यासकार औऱ कवि सामने आए हैं। उनका लेखन किसी भी मामले में भारत केतथाकथित मुख्यधारा के लेखन से कमतर नहीं है। मगर विदेशों में भी कुछ लेखक ऐसे हैंजो कि अपने आपको प्रवासी लेखक नहीं मानते और प्रवासी विशेषांकों में रचनाएं देने सेसाफ़ मना कर देते हैं। इनमें आबुधाबी से कृष्ण बिहारी (जो अब वापिस भारत आ चुके हैं)अमरीका से इला नरेन और ब्रिटेन के प्राण शर्मा का नाम विशेष तौर पर लिया जा सकता है।इसलिये ज़ाहिर है कि इन लेखकों के लेखन को इस श्रृंखला में शामिल करना उचित नहींहोगा।
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