जनता के बीच विभिन्न माध्यमों से किये जाने वाले सम्प्रेषण का व्यावहारिक अनुप्रयोग प्रयोजनमूलक मीडिया है। प्रयोजनमूलक मीडिया का वर्तमान स्वरूप परिपक्व समाज की मनोदशा विचार संस्कृति और आम जीवन दशाओं को नियंत्रित व निदेशित कर रहा है। इसका प्रवाह अति व्यापक एवं असीमित है। प्रयोजनमूलक मीडिया माध्यमों द्वारा समाज में प्रत्येक व्यत्तिफ को अधिक से अधिक अभिव्यत्ति का अवसर प्राप्त हो रहा है। स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र की आधरशिला है अर्थात जिस देश में मीडिया के माध्यम स्वतंत्र और प्रयोजनमूलक नहीं है वहां एक स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण होना संभव नहीं है। मीडिया माध्यमों का जाल इतना व्यापक है कि इसके बिना एक सभ्य समाज की कल्पना की ही नहीं जा सकती। हालांकि मीडिया माध्यमों में हाल ही कुछ वर्षों में एक क्रांति का उदय हुआ है जिसे हम मीडिया-क्रांति कहते हैं। जनमाध्यमों में क्रांति के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी क्रांति आयी है जिसने मार्सल मैक्लुहान के वत्तव्य को पूर्णतः सत्य कर दिया कि संपूर्ण दुनिया एक वैश्विक-गांव में तब्दील हो जाएगी। मनुष्य के बोलने का अंदाज बदल जाएगा और क्रिया-कलाप भी। ऐसा ही हुआ है आज युवा रेडियों सुन रहा है टेलीविजन देख रहा है मोबाइल से बात कर रहा है और अंगुलियों से कंम्प्यूटर चला रहा है। कहने का मतलब यह है कि युवा एक साथ कई तकनीकों से संप्रेषण-प्रक्रिया को अंजाम दे रहा है। प्रयोजनमूलक मीडिया संप्रेषण का विस्तृत स्वरूप धरण कर चूका है। जनसंचार माध्यमों का युवा वर्ग पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में बाते करें तो हर एक विषय की तरह इसके भी दो रूप दिखाई पड़ते हैं- सकारात्मक और नकारात्मक।
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