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About The Book
Description
Author
प्रेम है द्वार प्रेम है मार्ग और प्रेम ही है प्राप्ति। मनुष्य की भाषा में ‘प्रेम’ से ज्यादा बहुमूल्य और कोई शब्द नहीं। लेकिन बहुत कम सौभाग्यशाली लोग हैं जो प्रेम से परिचित हो पाते हैं। क्योंकि प्रेम की पहली शर्त ही आदमी पूरी नहीं कर पाता। और पहली शर्त पूरी करनी थोड़ी कठिन भी है। पहली शर्त यह है कि जो आदमी अपने अहंकार को मिटाने को राजी है वही केवल प्रेम को उपलब्ध हो सकता है। ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु: आपने कभी किसी को प्रेम किया? आपके पास समन्वय की दृष्टि है या विश्लेषक की? कौन सी चीज है जो आदमी के प्रेम को रोके हुए है? प्रेम से ज्यादा और कोई दर्शन और दृष्टि नहीं है धर्म को हमने अभ्यास बनाया था अतीत युगों में। धर्म को अभ्यास नहीं बनाया जा सकता। धर्म प्रेम की तरह की घटना है। इसलिए मैं कहता हूं: धर्म प्रेम है। और जो प्रेम के इस राज को समझ लेता है वही केवल धर्म के राज को समझ सकता है। और जीसस का यह वचन बहुत महत्वपूर्ण है जहां उन्होंने कहा है: ‘br>लव इ़ज गॉड।’ जहां उन्होंने कहा है: ‘प्रेम ही प्रभु है।’ असल में प्रेम ही प्रभु है इसका मतलब है कि प्रेम के घटने का जो मार्ग है धर्म के घटने का भी वही मार्ग है। ओशो मैं मानता हूं कि भविष्य में कोई भी धर्म जो मनुष्य को संसार-विमुख करता होगा वह धर्म जिंदा नहीं रह सकता उसके मरने की घड़ी आ गई है। ऐसा धर्म चाहिए जो संसार को रूपांतरित करता हो संसार से भगाता न हो। ऐसा धर्म चाहिए जो गृहस्थ को संन्यासी न बनाता हो जो गृहस्थ होने में ही संन्यास को ले आता हो। ऐसा धर्म चाहिए जो जिंदगी के बीच हमें मिल जाए जिंदगी को छोड़ कर जिसके लिए हमें जाना और भागना न पड़े। ओशो.