Prem Dhara

About The Book

कवि उद्गार ........ ( प्रेम धारा )........ प्रत्येक कवि का यही लक्ष्य होता है कि वह गागर मे सागर को भर दे.. वस्तुतः कविता का तात्पर्य भी यही होता है .. बड़े प्रसंग को कुछ ही पंक्तियों में परिलक्षण ही तो कविताओं का मूल स्वरुप है.. तात्कालिक और लाक्षणीय घटनाक्रम को पंक्तियों में पिरोना ही तो किसी कवि की असली पहचान होती है.. मेरी इस कविता संग्रह में मन मोहक शब्दों को तुकबंदी में पिरोया गया है.. प्रस्तुत संग्रह की प्रस्तुति में पुष्प कलि मैं अपनी प्यारी नतनी के जन्म पश्चात के क्षण को यूँ पंक्ति वद्ध किया हूँ.... तौलिये में लिपटी मेरी गोद तू आई नन्ही नयनों से मुझे देख मुस्काई होठों के ऊपर तेरी नन्ही जिह्वा थी नाना के दिल उतर प्यार छितराई.. पालने में लेटी आसमां घूर रही थी अनजान तू पालना नीचे जमीं थी तेरी पग स्वागत को पुलकित धरा उल्लसित हो बैचेन हो रही थी.. इस प्रकार सभी कविताओं में महक है प्यार है उद्गार और ललकार की तो पूरी पूट ही भरी पड़ी है.. सामाजिक रीति कुरीति भी कवि लेखिनी को प्रभावित करती है... इसका पूरा ख्याल रखा गया है.. निर्णायक तो स्नेही पाठक गण ही होते हैं.. समीक्षा का सदा ही इंतजार रहेगा .. प्रतिक्रिया ही मेरी लेखिनी को और धारदार बनाएगी.... परमेश्वर दास परमेश
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