हमारे समय में प्रेम जनमेजय हिंदी व्यंग्य का ऐसा नाम है जिनकी चर्चा के बिना व्यंग्य पर विमर्श अधूरा है। व्यंग्य के प्रति समर्पण को देखते हुए ही हमारे समय की महत्वपूर्ण कथाकार चित्रा मुद्गल ने कहा था कि प्रेम का ओढ़ना- बिछाना सब व्यंग्य है। अपने लेखन को बैक सीट पर डालते हुए उन्होंने ‘व्यंग्य यात्रा’ के माध्यम से हिंदी व्यंग्य का एक गंभीरसार्थक और गुणवत्तापूर्ण मंच तैयार किया है। व्यंग्य के विभिन्न मोर्चों पर सन्नद्ध् प्रेम जनमेजय को हिंदी व्यंग्य का विश्वविद्यालय कहा जाता है। अपने आंरभिक दिनों में उन्होंन बाल साहित्य और नवसाक्षरों के लिए भरपूर लिखा है। व्यंग्यात्मक शैली में संस्मरण प्रेम जनमेजय की संस्मरण केंद्रित दो पुस्तकें हैं। उनके अंदर एक कवि भी छिपा है जो ‘जहाजी चलीसा’ रच सकता है। शरद जोशी के बाद हिंदी व्यंग्य नाट्य क्षेत्र में एक वैक्यूम- सा है प्रेम जनमेजय ने अपने तीन चर्चित नाटकों के माध्यम से इस वैक्यूम को भरा है। इनकी व्यंग्य दृष्टि और कहन की प्रशंसा करते हुए कभी भीष्म साहनी ने लिखा था ‘‘जगह-जगह आपके निबंध् मात्रा व्यंग्य के धरातल से उठकर सीधे दिल को मथने लगते हैं गहरे में उद्वेलित करने लगते हैं। ऐसे स्थल मुझे विशेष रूप से प्रिय लगे। लिखते समय आपके दिल का दर्द ही उन्हें शब्दों में ढालाता होगा।’’ डॉ0 तरसेम गुजराल प्रेम जनमेजय के लेखन के रगो-रेशे से वाकिफ हैं। उनके संपादन में यह किताब प्रेम जनमेजय पर एक संपूर्ण किताब जैसी होगी। --- जितेंद्र पात्रो प्रमुख संपादक प्रलेक प्रकाशन समूह
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