प्रस्तुत उपन्यास के कथानक में जितने भी पात्र हैं वे हमारे आस-पास कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी रूप में मिल सकते हैं वे कोरी कल्पना से गढ़े पात्र नहीं हैं। आज कैंसर की बीमारी भयावह रूप धारण कर चुकी है। इसके मुख्य कारणों में हमारी जीवनशैली बहुत हद तक उत्तरदायी है। हमारे खान-पान रहन-सहन में कुछ भी तो प्राकृतिक नहीं रहा। हर खाद्य पदार्थ जल वायु इतने प्रदूषित हो चुके हैं कि हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता का दिन-प्रतिदिन क्षय हो रहा है। कैंसर जैसी ही एक घातक प्रवृत्ति हमारे समाज को घुन की भाँति क्षति पहुँचा रही है। यह है धर्म के नाम पर नापाक इरादों से भोली लड़कियों को झूठे सपने दिखाकर अपने जाल में फँसाना और फिर या तो उनका धर्म परिवर्तन करवाकर उनसे गलत काम करवाना अथवा उन्हें अधर में छोड़कर उनके जीवन से खिलवाड़ करना।
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