*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹280
₹450
37% OFF
Paperback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
“देह का समर्पण प्रेम नहीं है देह का त्याग मोक्ष नहीं है।” “प्रेम नाम परमात्मा का और स्वयं को पहचान लेना ही मोक्ष है।” “एक ओर प्रज्वलित अग्नि को रखें तथा दूसरी ओर स्त्री को रखा जाए तब स्त्री अकेले भार मुक्त रहेगी। अग्नि की लौ को काष्ठ शांत नहीं कर सकती समुद्र की तृष्णा को नदियाँ तृप्त नहीं कर सकती।” पं. शम्भूनाथ जी महाराज ने स्त्री प्रेम की इच्छापूर्ति को प्रकट करते हुए कहा था। प्रेम प्राप्ति के लिए रति के द्वारा किए जा रहे अथक प्रयास के असफल होने के परिणामस्वरूप शिव का जीवन छिन्न-भिन्न होने से सत्य मार्ग की ओर शिव को जाने से रति रोकने में असमर्थ है। “कुछ क्षण मुझे यहीं रहने दो शिव के देह की गंध अभी शेष है।” जो प्रेम वासना पर आकर समाप्त हो जाए वह मात्र दैहिक आकर्षण के अतिरिक्त कुछ नहीं है। मानव प्रेम की अवधारणा को ग्रहण करते-करते कब मोक्ष की अवधारणा को प्राप्त हो जाता है यह पुस्तक इस रहस्य को प्रकट करती है। श्रेष्ठ के लिए श्रेष्ठतम को त्याग देना मानव की प्रकृति है। उचित व अनुचित में भिन्नता की पहचान न कर पाना ही पतन का मुख्य कारण है। भारतीय पुराणों पर आधारित प्रेम और मोक्ष को परिभाषित करने का यत्न करती पुस्तक प्रेम मोक्ष।