प्रेम...प्रेम नाम है मेरा...प्रेम चोपड़ा। बॉबी फिल्म का सिर्फ एक डायलॉग सिने जगत पर राज करने वाले बेहतरीन खलनायक की अमिट पहचान बन गया। कारण प्रेम चोपड़ा का डायलॉग बोलने का खास अंदाजा इसी डायलॉग से जुड़ा दिलचस्प किस्सा है डलहौजी से दिल्ली ट्रेन के सफर का। प्रेम चोपड़ा से हर स्टेशन पर इसी डॉयलाग को सुनाने की मांग की जाती रही। वे अपने चाहनेवालों की डिमांड पूरी करते रहे। अगले दिन दिल्ली शहर के हर प्रमुख अखबार की हेडलाइन थी डलहौजी से दिल्ली तक की ट्रेन प्रेम चोपड़ा के चाहने वालों की भीड़ के कारण एक घंटा लेट हुई। यह डायलॉग आज भी सिने प्रेमियों की जुबान पर है।<br>इस किताब में आप एक बेटे-पति-पिता-दोस्त के अलावा मिलेंगे जुनूनी युवा प्रेम चोपड़ा से जिन्होंने अथक परिश्रम से मायानागरी के दर्शकों के दिलों पर ही नहीं रूह पर भी अमिट छाप छोड़ी है।<br>एक खलनायक पर्दे पर जिन्हें देखते ही सिनेप्रेमी सहम जाते हों। साजिश रचते खुराफात करते देख चीखें। निकल जाती हों। रूपहले पर्दे पर जिसकी धमक आपके चेहरे की रंगत को फीका कर देती हो। अभिनेता के अभिनय का चरम है लेकिन सौम्य व्यक्तित्व के पारिवारिक इंसान के लिए असहनीय। एक साफ-सुथरे व्यक्तित्व के इंसान के लिए अपने किरदार पर उठी एक अंगुली बर्दाश्त के बाहर होती है यहां सारा किरदार ही ग्रे और ब्लैक शेड को अपने अंदर समाहित किए हुए है।<br>क्या कभी आपने सोचा है कि रूपहले पर्दे पर जिस अभिनेता की एंट्री आपकी रुह कंपकंपा देने के लिए काफी है उसका किरदार जीवन के वास्तविक रंगमंच पर कैसा है? मायानगरी के अनगिनत कलाकारों के बीच अंगुलियों पर गिने जाने वाले खलनायक हैं जिन्होंने दर्शकों के दिल ही नहीं आत्मा पर भी अपनी छाप छोड़ी है। उन्हीं में से एक अजीमोशान किरदार है। प्रेम चोपड़ा का।<br>आखिर कौन हैं प्रेम चोपड़ा? किस तरह का है। उनका वास्तविक किरदार? प्रेम चोपड़ा की जिंदगी से। जुड़े इन्हीं सवालों को हल करने का प्रयास करती है। यह किताब। 'प्रेम...प्रेम नाम है मेरा...प्रेम चोपड़ा...' यह वाक्य जब सिल्वर स्क्रीन में गूंजता था तो ड्रेस सर्कल से लेकर बालकनी यहां तक कि बॉक्स में बैठे दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते थे कि पता नहीं अब यह क्या। खुराफात करेगा। रूपहली दुनिया के अनदेखे किस्से अपने अंदर समाहित की हुई इस किताब के जरिए आप एक अद्भुत यात्रा पर निकलने वाले हैं। यात्रा एक ऐसे किरदार की जिसने सदी के महानतम विरोधाभासों को जिया है।<br>इस यात्रा की जिम्मेदारी उनकी बेटी रकिता नंदा निभा रही हैं जिन्हें इस किताब पर काम करते हुए। समझ आया कि वे अपने पिता की परछाई ही हैं। रूपहले पर्दे और निजी जिंदगी के बीच उतरते-चढ़ते प्रेम चोपड़ा की यह जीवंत यात्रा जीवन के कितने ही दोराहों से हमें बचा सकती है। यह किताब पांच दशकों से ज्यादा की सिने जिंदगी का जिंदा दस्तावेज है जिसमें आपको प्रेम चोपड़ा के अलावा भारतीय सिनेजगत की सच्ची और अनूठी किस्सागोई मिलेगी।
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