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About The Book
Description
Author
गुरुमत अगम अगाध जैसे प्रेमी एक-दूसरे से मिल जाना चाहते हैं क्षण भर को ही सही! क्योंकि जगत का मिलन तो क्षण भर का ही हो सकता है। जैसे क्षण भर को प्रेमी और प्रेयसी एक-दूसरे में डूब जाना चाहते हैं और क्षणभर को भी सुख की एक पुलक एक उल्लास एक झलक एक किरण उतरती है। वह तो किरण ही होगी--आई और गई! पहचान भी न पाओगे कि कब आई कब गई! बस भनक कान में पड़ेगी और जाना भी हो जाएगा। लेकिन भक्त और सदगुरु के बीच जो मिलन की घटना घटती है वह शाश्वत के तल पर है क्योंकि समाधि के तल पर है। मैंने कहा: विद्यार्थी मिलता है शिक्षक से बुद्धि के तल पर। शिष्य मिलता है गुरु से हृदय के तल पर। भक्त मिलता है भगवान से समाधि के तल पर। हृदय से भी एक और गहरी जगह है तुम्हारे भीतर वहीं तुम हो वहीं तुम्हारी आत्मा है। आत्मा के तल पर जब मिलन होता है तब मिलन शाश्वत है। बुद्धि का मिलन तो बनता है टूटता है। हृदय का मिलन टूट नहीं सकता मगर जो मिले हैं वे अभी दो होते हैं। आबद्ध हैं आलिंगनबद्ध हैं पर हैं अभी भिन्न! टूट नहीं सकते--सच निश्चय ही। मगर अभी दो हैं अभी एक नहीं हो गए हैं। ओशो