कलम के सिपाही’ के नाम से मशहूर प्रेमचन्द की गिनती हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में होती है। प्रेमचन्द बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचन्द की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। प्रेमचन्द ने कहानी और उपन्यास दोनों ही लिखे हैं। प्रेमचन्द की जीवन दृष्टि की व्यापकता उनकी रचनाओं में दिखाई देती है। उन्होंने भविष्यदृष्टा के रूप में साहित्य को समृद्ध किया। उन्होंने जिन समस्याओं को उठाया वे आज भी मौजूद हैं। उनका साहित्य जीवन की सच्चाइयों का दर्पण है। आज भी उनके लिखे हुए लेख कहानियों की चमक कम नहीं हुई है। मुंशी जी की भाषा इतनी सरल व सुग्राह्य है कि पाठक चाहे कम से कम पढ़ा हो या विद्वान पढ़ते वत्त तल्लीन व भावुक होकर एक-एक शब्द को पी जाना चाहता है। वास्तव में प्रेमचन्द सिर्फ नाम नहीं हिन्दी साहित्य वेफ विकास की गाथा हैं। प्रेमचन्द सांप्रदायिकता विरोधी साम्राज्यवाद विरोधी चेतना के रचनाकार थे। मानवतावाद उनके सृजन की मूल प्रेरणा थी। उन्होंने सौंदर्य की कसौटी बदलने की बात की साहित्य को उपयोगिता की कसौटी पर कसने की बात की। वे पहले की अपेक्षा अध्कि प्रासंगिक है। ‘ईदगाह’ ‘सद्गति’ ‘दूध का दाम’ और ‘दो बैलों की कथा’ जैसी ना जाने कितनी ही बेहतरीन कहानियां देने वाले मुंशी प्रेमचन्द जैसा साहित्यकार सदियों में पैदा होता है। पुस्तक में संग्रहित कहानियों को चुनते समय इस बात का ध्यान रखा गया है कि प्रत्येक कहानी में कोई-न-कोई ऐसी विशेषता अवश्य हो जो उस कहानी को औरों से अलग करती हो याद रखने लायक बनाती हो। इन कहानियों को चुनते समय यह ख्याल भी रखा गया कि कहानी उस कहानीकार की चर्चित कहानियों में से हो और जीवन के किसी अनूठे पहलू को उद्घाटित करे। कुल मिलाकर कहानियां अपने समग्र रूप में एक ऐसी तस्वीर पेश करें जिसमें भारतीय जन-जीवन की झांकी नजर आये। वास्तव में प्रेमचन्द का साहित्य जागृत करने वाला है जिसे आज समाज को सबसे ज्यादा जरूरत है। आज हिंदी साहित्य की कोख प्रेमचन्द के बिना सूनी नजर आ रही है।
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