इस पुस्तक में संकलित निबन्धों और लेखों से प्रेमचन्द के दृष्टिकोण को समझने में उनकी रचनाओं को विवेचित करने में न केवल मदद मिलेगी बल्कि प्रेमचन्द के समय को भी परिभाषित करने में सुविधा होगी। आजादी या स्वाधीनता का क्या अर्थ प्रेमचन्द समझते थे और राजनैतिक हल्कों में उन्हें क्या दीख रहा था इसमें काफी फर्व है। लेखों को पढ़कर उस फर्व को पहचाना जा सकता है। उनकी रचनाओं से उनकी तुलना की जा सकती है। नवजागरणकालीन अन्य रचनाकारों की तरह से वे समग्र चेतना के रचनाकार थे। उनकी भाषा का तेवर और वाक्य-विन्यास अंग्रेजी वाक्य-विन्यास का हिन्दी रूपान्तर नहीं है बल्कि कौम के मानसिक विकास का कायान्तरण है। भाषा रुकी हुई या बाधा डालनेवाली अपारदर्शी नहीं पारदर्शी है। वे अपरिचित को भी पारिवारिक और परिचित की तरह प्रस्तुत करते हैं। वस्तुपरक विषय-प्रधान लेखों में भी गहरी आत्मीयता है अलगाव नहीं है। इसलिए वे हमारे पूर्वज ही नहीं समकालीन हैं।.
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