हिन्दी साहित्य के सम्राट मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ सचमुच ही अपने आप में अद्भुत रोचकता और भावनाओं को समेटे हुए हैं। उनकी लेखनी से उद्धृत प्रत्येक वाक्य वर्तमान समय की कसौटी पर खरा उतरता है। उनकी रचनाएँ बेहद सरल और सौम्य भाषा में हैं। प्रत्येक रचना पाठक के अंतरंग मन को छू जाती है। प्रेमचंद केवल एक मनोरंजक लेखन ही नहीं अपितु वे हिन्दी और उर्दू भाषा में अपनी दक्षता के लिए भी प्रसिद्ध हैं। यूँ तो उनकी प्रत्येक रचना पाठक के लिए अद्भुत है परन्तु कुछ रचनाएँ अपनी अमर-छाप छोड़े हुए हैं जैसे-बूढ़ी काकी हमारे समाज में बुजुर्गों के साथ हो रहे अपमानजनक व्यवहार को प्रकट करती है। इसी तरह ‘समस्या सवा सेर गेहूँ बड़े भाई साहब ईदगाह जो एक ऐसे बाल मन को पाठक तक पहुँचाती है जो उम्र में है। तो छोटा-सा पर विचारों से वह इतना बड़ा है कि अपनी उम्र से ज़्यादा के बालकों को भी अपनी सोच-विचार का दीवाना बना लेता है। और अपनी इच्छाओं को एक तरफ कर अपनी पालनकर्ता की ज़रूरत को पूरा करता है। इसी तरह प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी पूस की रात में जहाँ एक ओर किसान की समस्याओं को दर्शाया गया है। वहीं एक अमुख जानवर का मनुष्यों के प्रति प्रेम को भी दिखाया गया है।। इस पुस्तक में दी गई सभी कहानियाँ पाठक को एक ऐसे परिवेश का दर्शन कराती हैं जो ग्रामीण परिवेश के साथ-साथ हमारे आस-पास हो रही प्रत्येक घटनाओं की साक्षी हैं।
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