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About The Book
Description
Author
चारों दिशाएँ चौदह भुवन खाली-खाली लगते हैंएक अध-जला दीया की रस्सी की तरहनाम के वास्ते हाथ-पैर पसारकरगिरा हुआ हूँ मैं।यह कैसा जीवन है प्रियतमा?हर पल मैं कितने शब्द जोड़ता हूँ और तोड़ता हूँजुड़े-तुड़े इन्हीं शब्दों से मैंएक वाक्य की माला भी बना नहीं सकाइस जीवन में।करोड़ों तारों और चाँद और सूरज के मेले मेंतुम ही तो मेरे साक्षी होतुम ही मेरे साक्षी हो भाव में रहकर भीकवि मर सकता है अभाव के नरक में।इस जीवन को अकेले में जाने दो प्रियतमाचाहे तुम जितने न पहुँचनेवाले दुनिया मेंतुम ही मेरी प्रथम और आखिरी वर्णमालातुम ही मेरा प्रथम और आखिरी वादा।—इसी पुस्तक से