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About The Book
Description
Author
वर्तमान युवा पीढ़ी अपने पारंपरिक लोक जीवन से धीरे-धीरे दूर होती जा रही है कटती जा रही है। बिना किसी उपकरणों खेल सामग्री के बुन्देली जनपद में खेली जाने वाली बाल क्रीड़ाओं से जहां एक ओर शिशुओं नन्हें-मुन्ने बालक-बालिकाओं का मनोरंजन होता था वहीं दूसरी ओर अनेक बाल हितैषी ज्ञान के कुछ सुत्र भी उसमें विद्यमान रहते थे। धीरे-धीरे वे अब समाप्त होते ही दिखाई पड़ते हैं। इसी तरह लोक जीवन से जुड़ी परम्पराओं का भी धीरे-धीरे ह्रास होता जा रहा है। इस पुस्तक में लेखिका ने बुन्देली लोकजीवन के जीवंत पहलुओं को प्रस्तुत किया है।