शरीर एक पुरुष का भावनाएँ एक नारीअपनी असल पहचान स्थापित करने की एक ट्रांसजेंडर के साहसपूर्ण संघर्ष की अद्भुत जीवन-यात्रा जो 23 सितम्बर 1964 में शुरू होती है जब दो बेटियों के बाद चित्तरंजन बंद्योपाध्याय के घर बेटा पैदा हुआ। बेटे सोमनाथ के जन्म के साथ ही पिता के भाग्य ने बेहतरी की ओर तेज़ी से ऐसा कदम बढ़ाया कि लोग हँसते हुए कहते कि अक्सर बेटियाँ पिता के लिए सौभाग्य लती हैं लेकिन इस बार तो बेटा किस्मत वाला साबित हुआ। वे कहते ‘चित्त! यह पुत्र तो देवी लक्ष्मी है!’ सोमनाथ जैसे-जैसे बड़ा होता गया उसमें लड़कियों जैसी हरकतें भावनाएँ पैदा होने लगीं और लाख कोशिश करने के बाद भी रुक या दब नहीं सकीं।बिना माँ-बाप को बताये वह घर छोड़ कर निकल पड़ा - नारी बनने के लिए। कहाँ कैसे वह नर से नारी बना सोमनाथ से मानोबी बन पीएच.डी. तक उच्चतम शिक्षा पाई और 9 जून 2015 में पश्चिम बंगाल के कृशनगर महिला कॉलेज की प्रिंसिपल बनी। यह एक ऐसी मिसाल है जो हर ट्रांसजेंडर के लिए प्रेरणा स्रोत है।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.