यह पुस्तक पूर्व औपनिवेशिक भारत में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी इतिहास रूचि रखने वाले पाठकों तथा इतिहास वेफ विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होगी। ऐसे समय में जब इतिहास सिर्फ राजनीति अर्थव्यवस्था तथा समाज तक ही सीमित था विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का ज्ञान विद्यार्थियों के लिए निश्चय ही किसी वरदान से कम नहीं है। यह पुस्तक मुख्य रूप से महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के इतिहास के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के अनुसार लिखी गई है। निश्चित रूप से इतिहास के स्नातकोत्तर के विद्यार्थी इस पुस्तक से लाभान्वित हो सकेगे। इसके अतिरिक्त इतिहास में तथा भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति में रूचि रखने वाले अन्य पाठकों के लिए भी यह पुस्तक उपयोगी साबित हो सकती है। इस पुस्तक में भारत में पाषाण काल से लेकर मध्य काल में मुगलों तथा राजपूतों के काल तक के विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के विकास का विस्तृत वर्णन किया गया है। अनुक्रमणिका : विज्ञान तथा प्रौद्योगिकीः महत्व समाज तथा स्रोत : प्रागैतिहासिक काल में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी : वैदिक तथा उत्तर वैदिक काल में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी : विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में विकासः प्रथम शताब्दी-1200 ई. : खगोल विज्ञान का विकास : औषधि तथा शल्य चिकित्सा में विकास : अरब जगत में बुद्धिवाद और वैज्ञानिक विचार तथा उनका भारत में स्वागत : प्रौद्योगिकी में नया विकास : चिकित्सा ज्ञान का विकास और आयुर्वेद युनानी तथा अलकीमिया में परस्पर प्रभाव : अरब जगत में खगोल विज्ञान का भारत में प्रभाव
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