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About The Book
Description
Author
वह संघर्ष के दिन थे। राज बब्बर उन दिनों किंग्स एपार्टमेंट से फोटोग्राफर अरविंद सिन्हा की मोटर साइकिल के पीछे बैठकर बीआर चोपड़ा के ऑफिस आते थे। अरविंद सिन्हा बोआर चोपड़ा के ऑफिशियल फोटोग्राफर थे। उनकी यह मेहनत रंग लायी और उन दिनों बीआर चोपड़ा इंसाफ का तराजू बना रहे थे जिसमें दीपक पाराशर भी थे उनका चयन कर लिया गया।** इंसाफ का तराजू की अपार लोकप्रियता के बाद राज बब्बर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मेरा यह अजीज उस फिल्म के बाद स्टार बन गया। उसके घर के बाहर नामी निर्माताओं निर्देशकों की भीड़ लग गयी। वह फिल्म में ऐसा किरदार निभा गया जिसे नफरत मिलनी थी. उसे प्यार ही प्यार मिला।** चार दशक बाद भी मेरा उनसे संबंध यथावत है। उनके व्यवहार में रत्तीभर भी बदलाव नहीं आया। हर त्योहार हर उत्सव अपनी हर सफलता में वह मुझे शिद्दत से याद करते हैं। जब भी मिले हम पुराने दिनों को ही याद करते हैं। वे फिल्मों में शिखर पर रहे मैं टीवी पर ऊंचाई पर ही रहा। जब भी मेरा मन करता है उनके घर नेपथ्य जाकर मुलाकात कर आता हूं। वह आज भी पुराने दिनों की ही तरह उतने ही सौम्य शालीन संस्कारी व्यावहारिक मस्तमौला और सज्जन हैं। वह - सुरेंद्र पाल . अभिनेता