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About The Book
Description
Author
राजस्थानी लोकगीत यहां की नारियों के हृदय की पुकार है। वह पुकार जो उनकी वास्तविक भावनाओं की प्रतीक है। यहां के पुरुष-प्रधान सामन्ती परिवेश में पराधीनता को भी उन्होंने काल्पनिक आकांक्षाओं की स्वाधीनता के आनन्द में बदल दिया है। परिवार की बलिवेदी पर सबकुछ त्याग करने वाली स्त्री ने क्या भोगा क्या सहा क्या किया और क्या चाहा- इनके स्पष्ट संकेत इन लोकगीतों में देखें जा सकते हैं। ये गीत नहीं होते तो स्त्रियां बिना मौत मर जातीं। अब गीत भले ही फिल्मी प्रभाव से रूप शब्द और राग बदल रहे हैं पर गीतों और स्त्रियों का सहअस्तित्व हमेशा बना रहेगा। स्त्रियों की जीवन-जड़ें इनमें और रूप बदलकर आने वाले भावी गीतों में ही निहित रहेगी। - चन्द्रकान्ता व्यास