साहित्य की दुनिया में रजत कृष्ण आज एक जाना-पहचाना नाम है। रजत ने न केवल प्रचुर मात्र में साहित्य पढ़ा और लिखा है बल्कि उससे भी एक कदम आगे बढ़कर जिया है। मगर शायद यह कम ही मित्र और रजत से प्रेम करने वाले जानते हैं कि लगभग चार दशकों से चली आ रही रजत की यह यात्र बेहद पथरीली ऊबड़-खाबड़ रास्तों और टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुजरकर यहाँ तक पहुँची है। रजत को जानने और चाहने वालों में बागबाहरा जनपद जहाँ रजत का स्थाई निवास है के हर वर्ग के साथियों जिनमें किसान मजदूर बच्चे नौजवान और बुजुर्ग शामिल हैं से लेकर देश भर के साहित्यिक मित्रें की एक लंबी फेहरिस्त बनाई जा सकती है जिसमें दो नाम हमारे भी जोड़े जा सकते हैं।... ...रजत पर केंद्रित इस संग्रह को हाथ में लेने से पहले दोस्तों से यह समझने की गुजारिश है कि इसमें सम्मिलित कवि या लेखक सभी साहित्यकार नहीं है बल्कि इनमें रजत के मित्र सहकर्मी और विद्यार्थी भी शामिल हैं। रजत कृष्ण के व्यक्तित्व और कृतित्व पर समग्रता से कोई प्रतिष्ठित पत्रिका अंक निकाले और वह बड़े पाठक वर्ग तक पहुँचे यह सपना अब हकीकत में बदलता दिख रहा है। दरअसल इसी उम्मीद को जिंदा रखने की एक छोटी सी कोशिश हमने यहाँ की है। ---नंदन-भास्कर
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