राजेंद्र सजल जी के रचनाकर्म का अपना एक अलग संसार है जो की समकालीन कथाकारों से इन्हें अलग पहचान दिलवाता है। इनकी कहानियां स्त्री जीवन की जीवटता का सशक्त प्रमाण है । वे स्त्री मन को जिस सघनता और गहनता से उकेरते हैं चकित करता है । संतोषी (साहित्यकार –संपादक) (कोख और कोठरी : एक अनसुलझा रहस्य ) “यह एक साधारण से कथ्य वाली असाधारण कहानी है जिसकी गूंज सुनी जाती रहेगी। कहानी गफ्फार मियां और उनके छोटे से तीन सदस्यों के एकल परिवार के माध्यम से भारत पाक विभाजन के दौरान घटित होती है और पाठकों को एक सुन्न अँधेरे में आहत छोड़ जाती है।अंत उद्घाटित करने से कहानी की हत्या का अंदेशा है इसलिए कहानी के भीतर से गुजरिए ।” -- धीरेन्द्र अस्थाना (वरिष्ठ साहित्यकार –पत्रकार) “...कहानियों में एक अपरिचित दुनिया और उसके चरित्र हमारे सामने आते हैं। राजेन्द्र सजल...अपने कार्यक्षेत्र में आदिवासी जीवन को भी पारदर्शिता और गहन संवेदना के साथ अभिव्यक्त करते हैं।...” ‘इत्ती-सी बात’ वृद्ध दंपति की प्रीति से भीगी कहानी है जिसका अंत वृद्धा भंवरी के ऐसे कंफेशन से होता है जिसमें उसकी हंसी छिनने का प्रसंग है। इन कहानियों में तलछट के जीवन में भी जो अन्तर्विरोध व्याप्त हैं वे उभर कर आते हैं।...”- राजाराम भादू (वरिष्ठ आलोचक) “राजेन्द्र जी की कहानियों में लोक की विविधता का बहुरंगी संसार जीवंत रूप में मौजूद है। हर कहानी अपनी शैली-शिल्प और किस्सागोई के साथ-साथ पठनीयता के लिए अलग से पहचानी जा सकती है...” - चरण सिंह पथिक (वरिष्ठ कथाकार) “ग्रामीण परिवेश में लोक मुहावरों और कथा की शऊर वाली राजेन्द्र सजल की कहानियाँ आधुनिक चेतना और बोध को उत्प्रेरित करती हैं। सामंतवाद सांप्रदायिकता ब्राह्मणवाद पितृसत्ता जातिवाद के तंतुओं को बारीक़ नज़र से देखती सजल की कहानियाँ इनके विरुद्ध एक कथ्य है एक प्रस्तावना है ।” -संजीव चंदन (संपादक पत्रकार –लेखक )
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