बंगाल की आत्मा में एक ऐसी सच्चाई छिपी है जो दशकों तक इतिहास के घने पर्दे में दबी रही—अनसुनी अनदेखी मानो समय ने उसे भुलाने की ठान ली हो। विवेक रंजन अग्निहोत्री की ऐतिहासिक फ़िल्म द बंगाल फ़ाइल्स के लिए गहन शोध और समर्पण से जन्मी रक्तबोध: बंगाल की गाथा एक मार्मिक कहानी रचती है। यह पुस्तक हिंदू नरसंहार विश्वासघात और इतिहास के दफ़न सत्य को उजागर करती है—वह सत्य जो हिंदू सभ्यता के अतीत को झकझोरकर उसकी नियति को नया बल देता है।यह पुस्तक डायरेक्ट एक्शन डे के रक्तरंजित नरसंहार से लेकर नोआखली के भुलाए गए रक्तपात की दर्दनाक सच्चाइयों को सामने लाती है। यह उन औपनिवेशिक चालबाज़ियों को बेनकाब करती है जिनके साये आज भी बंगाल की गलियों में मंडराते हैं। इन सत्यों को इतिहास के पन्नों में दबाने की कोशिश की गई पर यह पुस्तक उन्हें पुनर्जन्म देती है—एक ऐसी कहानी जिसे आधिकारिक इतिहास ने अनदेखा कर दिया।ऐतिहासिक तथ्यों और प्रत्यक्षदर्शियों की गवाहियों को कहानियों के रंग में ढालकर अग्निहोत्री ऐसी तस्वीरें उकेरते हैं जो हृदय को छू लेती हैं—नोआखली में एक स्त्री असहनीय भय के बीच अपने मृत पति की हड्डियाँ थामे सवाल उठाती है; माँ भारती दुर्बल देह में भी चिरंतन आँखों में शोक और विद्रोह की ज्वाला लिए। यह पुस्तक केवल कहानियों का संग्रह नहीं बल्कि भारत की आत्मा की पुकार है—सत्य और न्याय के लिए एक सशक्त आह्वान।विवेक रंजन अग्निहोत्री की चर्चित ट्रायोलॉजी—द ताशकंद फ़ाइल्स और द कश्मीर फ़ाइल्स—के बाद यह तीसरी रचना एक निर्भीक इतिहास के रूप में उभरती है। यह न केवल भारत के दबे हुए सत्यों को उजागर करती है बल्कि पाठकों को आत्ममंथन और कर्मठता के लिए प्रेरित करती है।रक्तबोध: बंगाल की गाथा महज़ बंगाल का इतिहास नहीं बल्कि सत्य संघर्ष और जीवन पर एक गहन चिंतन है। यह पुस्तक हमें भूले हुए अतीत को स्मरण करने सोई चेतना को जागृत करने और घावों को भरने की प्रेरणा देती है।जैसे ही आप इसके पन्नों में प्रवेश करते हैं यह कहानी आपको बाँध लेती है आपके हृदय और चेतना पर एक अमिट छाप छोड़ती है।
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