पंजाब से आये कथाकार रामेश बत्तरा का हिंदी कहानी में एक महत्वपूर्ण स्थान है। उनके द्वारा बनाये पुल ने हिंदी साहित्य को बहुविध समृद्ध किया। रमेश जी एक कुशल कहानीकार लघुकथाकार उपन्यासकार नाटककार व अनुवादक के रूप में तो समादृत हैं ही वह एक सम्मानित संपादक भी रहे। तारिका साहित्य निर्झर सारिका नवभारत टाइम्स व संडे मेल में उनका संपादन कौशल ही था जिसने एक समर्पित कथापीढ़ी तैयार की। ''रमेश बत्तरा : एक शिनाख्त'' के संपादक महेश दर्पण ने उनका आत्मीय सान्निध्य तो पाया ही वह सारिका के संपादक मंडल में उनके साथ भी रहे। रमेश जी के कथाकार का क्रमिक विकास देखने के साथ-साथ इस पुस्तक के संपादक ने उनका जीवन संघर्ष भी करीब से देखा है। रमेश बत्तरा के लघुकथाकार रूप को समझने की दृष्टि से जहां इस पुस्तक में उनकी विशिष्ट लघुकथाएं प्रस्तुत की गई हैं वहीं लघुकथा-विमर्श खण्ड में रमेश जी के आलेख के साथ ही डा. अशोक भाटिया बलराम अग्रवाल शुभाष नीरव सूर्यकांत नागर और महेश दर्पण के समीक्षालेख इस विधा के साथ ही इस विशिष्ट लेखक की लघुकथाओं की समीचीन समीक्षा भी करते हैं। यहां गौरीनंदन सिंघल द्वारा रामेश बत्तरा से की गई बातचीत ऐतिहासिक महत्व की है तो रचनाकार से महेश दर्पण का संवाद एक नव्य प्रयोग ही है। इस पुस्तक में रचनाकार स्वयं संवाद भी करता नजर आएगा और साक्षात्कार भी। रमेश बत्तरा को आत्मीय नज़र से देखने का काम किया है उनके करीबी मित्रों महावीर प्रसाद जैन अशोक जैन तथा महेश दर्पण ने। यहां संग्रहीत रमेश जी की विशिष्ट कहानियां एकसाथ पढ़कर अध्येता समझ सकेंगे कि कैसे यह कथाकार अपने समय का एक प्रतिनिधि कथाकार बनता चला गया! उनकी कहानियों को समझने की चेष्टा यहां की है राजकुमार शर्मा तरसेम गुजराल महेश दर्पण और सुधांशु गुप्त ने। : कथाकार महेश दर्पण
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