Ramesh Pokhriyal ‘Nishank’ Ki Lokpriya Kahaniyan


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About The Book

रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ जी का साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। समय और समाज की विद्रूपता को रेखांकित करना विसंगतियों को उकेरना और विषमताओं पर कलम चलाना निशंकजी के साहित्य सृजन का एक ऐसा पक्ष है जो साहित्य को आमजन का साहित्य बनाता है। निशंकजी की कहानियों में समाहित यथार्थ एक बदली हुई रचनाशीलता का गहरा अहसास कराता है। ये कहानियाँ हर्ष विषाद सुख दुःख संघर्ष और जिजीविषा की कहानियाँ हैं। इन कहानियों में मानव-मन की उन अतल गहराइयों को नाप लेने की ताकत भी दिखलाई देती है जिन्हें पाकर कोई भी लेखक ‘लेखक’ हो जाने का विश्वास सँजो सकता है। कोमल शरीर और सबल आत्मा की ये कहानियाँ पढ़कर विश्वास हो जाता है कि लेखक के पास केवल आज की भयावह दुनिया का सच ही नहीं है बल्कि उस सच को काटने के लिए पैनी कलम भी है। इस संग्रह की कहानियाँ रचनाशीलता के तथाकथित साँचों को तोड़ते हुए अत्यंत सरल भाषा और वाक्य-विन्यास से भाषावादी तराश और पच्चीकारी को नकारती हैं। भाषा से अलग तंत्र व्यवस्था समाज और मनुष्य की निपट निरीहता को जितने सही संदर्भों में लेखक ने समझा है उनकी वह चेतना और जागरूकता कहानी के स्तर पर हमें दंशित करती है और हमारी नागरिक तथा सामाजिक चेतना को बुरी तरह आहत भी करती है।
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