रामकृष्ण का जब उदय हुआ था लगभग उसी समय बंगाल में ब्रह्मसमाज की स्थापना भी हुई थी। कालान्तर में रामकृष्ण द्वारा स्थापित संघ के प्रचार-प्रचार से ब्रह्मसमाज के माध्यम से भारतवासियों के अरद्ध ईसाईकरण की प्रक्रिया कम होती गई और आज केवल ब्रह्मसमाज का नाम शेष है। कोई विशेष गति नहीं। इसका श्रेय रामकृष्ण परमहंस को ही देना श्रेयस्कर होगा।<br>श्री रामकृष्ण की जीवनी उनके भक्तों में प्रचलित धारणाओं तथा उनके द्वारा लिखित जीवनियों अथवा साहित्य के आधार पर जितनी अधिकृत हो सकती थी लेखक ने उसके लिए अधिकाधिक प्रयत्न किया है। परमहंस के भक्तों ने लेखक ने जिन ‘लीला प्रसगों’ का उल्लेख किया है लेखक उनमेंसे उनके यथार्थ जीवन को खोजने का यत्न किया है। उसका ही परिणाम यह जीवन-चरित्र है।
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