Ramvilas Sharma


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About The Book

रामविलास शर्मा और नामवर सिंह के कृतित्व की विकास-यात्रा में एक-दूसरे की अपरिहार्य भूमिका और उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है । यदि नामवर सिंह नहीं होते तो संभवतः रामविलास शर्मा के कृतित्व की विशिष्टता उनकी उपलब्धि और मूल्यांकन कुछ और प्रतीत होते । उसी तरह रामविलास शर्मा की अनुपस्थिति में नामवर सिंह का व्यक्तित्व और कृतितत्व शायद कुछ और प्रतीत होता ! रामविलास शर्मा और नामवर सिंह जीवन सस्कूति साहित्य और राजनीति से जुडी यात्रा में हमराही से हैं । दोनों एक-दूसरे के चिन्तन और समालोचना को गहराई से प्रभावित करते प्रतीत होते हैं । शीर्षस्थ समीक्षकों ने एक-दूसरे को प्रभावित करने के साथ-साथ एक-दूसरे का मूल्यांकन भी किया है । सच तो यही है कि रामविलास शर्मा के कृतित्व उपलब्धि प्रासंगिकता और सीमाओं का बोध साहित्य-जगत को लगभग उतना ही है जितना नामवर सिह ने अपनी समीक्षा से प्रस्तुत किया है । तथ्य है कि आज भी हम रामविलास शर्मा के कृतित्व को ...केवल जलती मशाल और इतिहास की शव-साधना के दो ध्रुवान्तो के मध्य ही विश्लेषित करने को मजबूर हैं ! रामविलास शर्मा के सन्दर्भ में यह नामवर सिह की समीक्षा की अपरिहार्यता और केन्द्रीयता का दुर्निवार तथ्य और प्रमाण हैं । रामविलास शर्मा को समीक्षित करने के क्रम में यह संस्कृति भारतीयता साहित्य आलोचना विचारधारा और अंततः जीवन को समीक्षित करनेवाली अपरिहार्य एवं अविस्मरणीय समालोचना पुस्तक प्रतीत होती है ।
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